ग़ज़ल 50 : पैर नंगे वह चल है
2122---2122
पैर नंगे वह चला है
पाँव छाले ,कब रुका है
राह बाक़ी ज़िन्दगी की
और कितनी, क्या पता है
वह थका हारा हुआ है
साँस ले लेकर मरा है
और उसकी बेबसी को
इस ज़माने ने छला है
जो लदा इतने फलों से
देखिए कितना झुका है
छाछ पीता फूँक कर अब
दूध से शायद जला है
अर्चना की ज़िन्दगी यह
है नियामत या बला है
सं 12-05-21
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें