क़िस्त 11
1
धोकर पावन करती
वो है गंगा जल
जो दुख सारी हरती।
2
हरि ही हरियाली है
पग चूमों उनके
ये दुनिया निराली है।
3
आदर उस माँ की हो
माँ जननी जिसकी
अभिनन्दन माँ की हो।
4
मंजिल को पाना है
राहों पर चलके
श्रम को अपनाना है।
5
जागो, सूरज आया
तम ये दूर हुआ
सबको है मन भाया।
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