ग़ज़ल 47 : अपने हिस्से की
भी ज़िन्दगी—
212---212---212---212
अपने हिस्से की भी
ज़िन्दगी तो जियो
हर समय दूसरो का
जहर ना पियो
कौन किसका हुआ है यहाँ
भीड़ में
बस अकेले ही चलना यहाँ
,साथियो !
यह न सोचो कि कया सब
कहेंगे तुम्हें
ज़िन्दगी का मधुर रस सदा
तुम पियो
इस कदर लोग बढ़ने लगे होड़
में
हो गया चाक दामन तो फिर
से सियो
बच गए तो सभी साथ होंगे
कभी
इस ’करोना’ से पहले बचो, भाइयो !
सच के हक़ में खड़ी है सदा ’अर्चना’
सर झुका कर नहीं, सर उठा कर जियो
सं 12-05-21
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