गुरुवार, 20 मई 2021

ग़ज़ल 47

 

ग़ज़ल 47 : अपने हिस्से की भी ज़िन्दगी—

 

212---212---212---212

 

अपने हिस्से की भी ज़िन्दगी तो जियो

हर समय दूसरो का जहर  ना पियो

 

कौन किसका हुआ है यहाँ भीड़ में

बस अकेले ही चलना यहाँ ,साथियो !

 

यह न सोचो कि कया सब कहेंगे तुम्हें

ज़िन्दगी का मधुर रस सदा तुम पियो

 

इस कदर लोग बढ़ने लगे होड़ में

हो गया चाक दामन तो फिर से सियो

 

बच गए तो सभी साथ होंगे कभी

इस ’करोनासे पहले बचो, भाइयो !

 

सच के हक़ में खड़ी है सदा ’अर्चना’

सर झुका कर नहीं, सर उठा कर जियो

 

सं 12-05-21


 

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