ग़ज़ल
35: तीरगी का
ये कबतक
212—212---212---212
तीरगी का ये कब तक रहेगा असर?
रोशनी से सजाएं चलो यह शहर ।
जल है जीवन हमारा ,न दूषित करें,
लोग जाने हो क्यों आज तक बेख़बर।
सोचना है नई पीढ़ियों के लिए ,
कारखाने उगलने लगे अब
ज़हर ।
धूप देखो कहाँ से कहाँ चढ़ गई
जाग जाओ हुई जाने कब की सहर
रुकना मंज़िल से पहले गवारा नहीं
राह आगे की जितनी भी हो पुरख़तर
सं 02-05-2021
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