क़िस्त
36
1
चेहरे
पर लाली है
दो
नैना लगते
अमृत
की प्याली है
2
क्या
रूप सलोना है
बहलाता
दिल को
ज्यों
एक खिलौना है
3
हमको
तो खो जाना
प्यार
के सागर में
बस तेरा
हो जाना
4
अरमानों
का घर हो
तेरे
काँधे पर
मेरा
अपना सर हो
डा0
अर्चना पाण्डेय
क़िस्त
36
1
चेहरे
पर लाली है
दो
नैना लगते
अमृत
की प्याली है
2
क्या
रूप सलोना है
बहलाता
दिल को
ज्यों
एक खिलौना है
3
हमको
तो खो जाना
प्यार
के सागर में
बस तेरा
हो जाना
4
अरमानों
का घर हो
तेरे
काँधे पर
मेरा
अपना सर हो
डा0
अर्चना पाण्डेय
क़िस्त 35
1
दिल तुझ पर वारा है
और नहीं कोई
बस तू ही सहारा है
2
कोई भी नहीं भाता
जाने क्यों मुझको
बस याद तू ही आता
3
होती है जब अनबन
तुम बिन सब सूना
कैसा यह अपनापन
4
यह प्यार तुम्हारा है
सागर में जैसे
तिनके का सहारा है
5
हम ऐसे मतवाले
प्यार किया तुमसे
हम ऐसे दिलवाले
डा0 अर्चना पाण्डेय
क़िस्त
34
1
क्या नेक इरादे थे
भूल गए क्यों तुम
जो क़समें वादे थे
2
जब तुमको जाना था
केवल बातों से
क्या दिल बहलाना था ?
3
आँखे यह तरसती हैं
तुमसे मिलने को
रह रह के बरसती है
4
दिल के गलियारे में
होती है चर्चा
बस तेरे बारे में
5
जब तुमको नहीं पाता
दिल अपने घर में
हर पल है घबराता
डा0 अर्चना पाण्डेय
अमलतास
अमलतास की झिलमिल झालर
सजी सड़क के दोनों छोर
पीत वसन ओढ़े नव दुल्हन
ज्यों चलती आंगन की ओर
मंद पवन आकर लहराए
पत्ते भी झिलमिल झकझोर
एक नहीं पत्ता हरियाला
पीले फूलों का बस ज़ोर
क्राफ्ट बनाते बच्चे जैसे
गोंद लगा कर चिपकाते
और सजाते एक दूजे को
फिर धागे के दोनों ओर
एक दिशा में हिलते सारे
एक रंग में इठलाते
शाम ढले ये लगते सुंदर
स्वर्णिम सी करते ये भोर
अपने यौवन पर इस जग में
कौन भला न इठलाया
माथे पर टीका नग वाला
काजल वाला काला कोर
तपती है धरती, लू बहता
हरियाली लगती अनजान
कोयल अपना राग सुनाती
बोल रहे डालों पर मोर
वर्षा को यह पास बुलाती
गर्मी चाहे जितनी जोर
अमलतास का रूप निराला
और अनोखा यह चितचोर
डॉ अर्चना पाण्डेय
क़िस्त 33
1
महका सा चंदन है
पास जो तुम होते
खिल जाता तन मन है।
2
मेरे होकर रहना
कह दो ना तुम भी
जो तुमको है कहना।
3
मन ही मन में पाया
साथी तुम मेरे
रहना बन कर छाया
4
क्यों हम पे मरते हो
कह दो ना इतना
तुम प्यार भी करते हो।
5
संग तेरे जीना है
तू ही मेरा काबा
तू मेरा मदीना है
क़िस्त 32
1
महकी ये हवाएँ हैं
साजन क्या आए
छाने को घटाएँ है।
2
थोड़ी सी हवा दे दो
हसरत है मेरी
उलफत की दवा दे दो।
3
तेरी बातों में हम
खो जाते हैं क्यों
हो जाते क्यों गुमसुम।
4
तुमसे कुछ कहना था
कह न सकी वो मैं
ख़ामोश ही रहना था।
5
नदियाँ सा बहना था
सागर के द्वारे
हमको तो रहना था।
क़िस्त 30
1
तुमसे याराना है
दिल मेरा तुझपर
रहता दीवाना है।
2
इन प्यार की गलियों में
तू ही नज़र आया
फूलों में कलियों में
3
ये पीर नहीं कोई
अपने हाथों से
मैंने ही थी बोई।
4
बेदर्द जमाना है
फिर भी दिल गाता
क्या खूब तराना है।
5
मै तेरा पता लेकर
ढूँढ़ रहा तुझको
मैं खुद को सज़ा देकर
क़िस्त 31
1
तुमने तो छुपाया है
लेकिन मैने तो
सब कुछ ही बताया है।
2
होगी ये मेहरबानी
आन मिलो तुम तो
बदले ये ज़िंदगानी।
3
दिल हार नहीं सकता
जीने की खातिर
मन मार नहीं सकता।
4
खुशियों का मेला है
वैसे तो जीवन का
हर रोज झमेला है।
5
आँखों ही आँखों में
बातें होती है
हर रात भी ख्वाबों में
क़िस्त 29
1
तुम एक कहानी हो।
[ मेरी चाहत में }
क्यों प्रेम दिवानी हो ।
[
2
दिल तेरे से मिलता
देख तेरा चेहरा
मन मेरा है खिलता।
3
सपना तो सपना है
टूट ही जाना है
क्या उस को परखना है।
4
आँखों में पलता है
सपना इक कोई
फिर हमको छलता है।
5
सूरज भी चढ़ता है
शाम ढली तो फिर
नित क्रम में ढलता है ।
क़िस्त 28
1
गुमसुम गुमसुम हरदम
क्यों रहते हो तुम
बोलो न मेरे जानम !
2
रोने ही वाला था
पाया तब तुमको
तुमने ही सँभाला था।
3
कहते हुए रुक जाती
जो कहना है वो
मैं क्यों नहीं कह पाती ?
4
जब जब तुम लहराती
बागों में चलती
कलियां भी शरमाती
5
जीवन की निशानी है
मेरी ग़ज़लों मे
इक तेरी कहानी है
क़िस्त 27
1
दिल खोया रहता है
यादों में तेरी
जाने क्या कहता है।
2
यादों का सहारा है
जीवन में मेरे
जैसे कि किनारा है।
3
यादों का दरिया है
जी लेंगे हम भी
जीने का जरिया है।
4
पावन मेरा जीवन
मथुरा, काशी सा
घर भी है वृंदावन।
5
फ़ूलों सा अपना मन
महका करता है
जैसे महके गुलशन
क़िस्त 25
1
दुनिया से हारा हूँ
मन से नहीं हारा
उठता मैं दुबारा हूँ।
2
कुछ बातें करती हूँ
तनहाई में ,मैं
तेरा दम भरती हूँ।
3
मिलने में दूरी है
सपनों में भी क्यों
ऐसी मजबूरी है ?
4
दिल मान नहीं सकता
प्यार करे ना वो
रोके से कहाँ रुकता।
5
लगता तू प्यारा है
दिल कहता रहता
तू प्यार हमारा है
क़िस्त 26
1
लिखती हूँ कहानी मै
दिल के कागज पर
सब याद पुरानी मैं
2
रूठा न करो हमसे
दिल बिंध जाता है
होने वाले गम से।
3
कुछ ब बात रही बाक़ी
कहना है कितना
अब रात रही आधी।
4
जो तुम मेरे होते
फिर न जुदा होते
इक राह चले होते ।
5
यह मन मन्दिर-सा है
आ जाते मिलने
तुमको
डर किसका है ?
क़िस्त 24
1
दर्शन तो बहाना था
हमको तो केवल
तेरे दर तक आना था।
2
दिल हो जाता पागल
याद लिए तेरी
लहराता जब आँचल।
3
बरफीली राहों में
धूप खिली होगी
उलफ़त की निगाहों में
4
मिलना मजबूरी है
तुम तो हो अपने
क्यों इतनी दूरी है ?
5
मेरे ही सवालों में।
ज़िक्र तेरा आता
क्यों रोज खयालों में
क़िस्त 23
1
कुछ प्यार जताना था
मिलने न आए तुम
मौसम भी सुहाना था
2
चढ़ती है जवानी जब
आग लगाता है
ठंडा भी पानी तब
3
इस प्यार की नगरी में
बाँध लिया तुमको
इक प्रेम की गठरी में
4
साथी जो मिला होता
प्रेम के दरिया में
इक फूल खिला होता
5
तेरे संग बातों में
कट जाता है दिन
रातें इन आँखों में
किस्त 22
1
सागर से है गहरा
प्यार मेरा हमदम
माथे पर ज्यों सहरा
2
मेरी ही किताबों मे
ख़त क्यों छुपाए तुम
क्या देखा ख़ाबों में ?
3
वादा कर जाते हो
राह ज़रा मुश्किल
क्यों बाँह छुड़ाते हो
:
4
तुम पर हम मरते हैं
जाने क्यों तुमको
खोने से डरते हैं
:
5
गलियों में छुप छुप कर
आहट सुनती हूँ
तेरी मैं रुक रुक
कर