बुधवार, 28 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल 024

 ग़ज़ल 024 : अपने ग़म की परत मैं ---


अपने गम की परत मैं छुपाती रही

 पर तुम्हें देखकर मुस्कुराती रही

 

चुभ रहे थे जो काँटे मेरे पाँव में

चीख अपनी सदा मैं दबाती रही  


जो भी रिश्ते न उन से निभाए गए

आज तक मैं वो रिश्ते निभाती रही  


कब ज़माने को मालूम क्या गम मेरा

खुद ही सुनती रही खुद सुनाती रही 


तार टूटे हुए ज़िन्दगी के मगर --

जोड़ कर साज फिर भी बजाती रही । 


जिन बहारों से कोई न उम्मीद थी

आस फिर भी उन्हीं से लगाती रही  


"अर्चना" जो थी  कल आज भी है वही

जाने दुनिया क्यों ऊँगली उठाती रही 


डा0 अर्चना पांडेय


गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

वीडियो 006

 

डा0 अर्चना --आल इंडिया रेडियो पर 13-10-2020

अपनी एक ग़ज़ल--अपनी आवाज़ में 


ग़ज़ल : राह मुश्किल प्यार की ,गिर गिर सँभलना चाहिए

Urdu Transmission live at 8:45 PM  दिनांक 13-10-2020

https://youtu.be/18TWbqm7bbI

पूरा कार्यक्रम देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

विडियो 006

वीडियो 005


 डा0 अर्चना पाण्डेय फ़ेसबुक पर दिनांक 13-10 -2020 को ’आन लाइव ’ 

 पूरा कार्यक्रम देखने के लिए यहाँ क्लिक करें 

 विडियो 005



वीडियो 004


 

अपनी एक ग़ज़ल अपनी आवाज़ में ----

ग़ज़ल : साथ मेरे तड़पना भी है ---

वीडियो 003

 


अपनी आवाज़ में अपनी एक ग़ज़ल 


ग़ज़ल : हो रही शाम अब घर निकल , साथिया !

वीडियो 002

 


अपनी आवाज़ में एक ग़ज़ल-[नए अन्दाज़ में]

 : हैदराबाद की कहानी है 

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

माहिए 003

 

क़िस्त 03

 

       1

नग़्मों ने, गीतों ने

मोह लिया है दिल

तेरी संगीतों ने

 

       2

आंखें जब कहती हैं

रुकती नहीं बातें

बस कहती रहती हैं

 

       3

टूटी वो डाली थी

थाम लिया तुमने

जो गिरने वाली थी

 

       4

तुम थाम लो हाथों को

भूल हुई मुझसे

भूलो उन बातों को

 

       5

बेकार की बातों से

खेल रहे हो क्यों

                         मेरी जज़्बातों से

 

 

 

माहिए 002

  

क़िस्त  02

 

1

मैं देख लूँ पल भर को

दिल में उतर आओ

कल चाहे नहीं आओ

 

       2

तुम ख़ुद ही समझ जाओ

छूट रहा है क्या
मुझसे नहीं कहलाओ

 

       3

क्या तुमको नहीं लगता?

प्यार का ये मौसम

रोके से नहीं रुकता

 

       4

क्यों छोड़ के जाते हो,

प्यार अगर है तो,     

क्यों प्यार छुपाते हो

 

5

आंखों के कजरे ने,

रा कई खोले,

बालों के गजरे ने


 


माहिए 001

 

क़िस्त 01

 

1

  वो शाम नहीं होती,

  याद तेरी जिस दिन,

  जिस शाम नहीं होती

 

       2

 कागज के टुकड़े थे

 नाम तेरा लिखकर

 हाथों से पकड़े थे

 

       3

वो प्यार का दिन पहला

 मुस्काती रातें

 दिल था बहला बहला

 

       4

खोए हो कहाँ जाने

आ जाओ तुम बिन

मन मेरा नहीं माने

 

       5

ये प्यार नहीं थकता

करता मनमानी

रोके से नहीं रुकता

 

ग़ज़ल 023

 

ग़ज़ल 23 : गीत हिंदी का गाते रहें

 

गीत हिंदी का गाते रहे,

भाव अपना सजाते रहे।‘     1

 

आज हिंदी दिवस पर्व को

हम मिल कर मनाते रहे     2

 

उर्दू ,अरबी हो या फ़ारसी

सब ही हिंदी में गाते रहे     4

 

क्यारियों में कई फूल थे

 रंग अपना मिलाते रहे      5

 

 सींचते हैं सभी बोलियाँ

शब्द अपना बनाते रहे 6

 

 एक अमॄत सी हिंदी मेरी

सब को  पीते -पिलाते रहे   7

 

  जो अकेले थे इस राह पर 

  साथ उनको बुलाते रहे     8

 

  शब्द खुद ही लगे बोलने

  राह ख़ुद ही दिखाते रहे    9

 

अर्चना’ की तमन्ना यही

ज्योति जलती जलाती रहे  10

 

-डा0 अर्चना पांडेय-

 

ग़ज़ल 022

  

ग़ज़ल 22 :चंद पन्नों में कैसे जबानी लिखूँ

 

212----212-----212----212

चंद पन्नों में कैसे जबानी लिखूँ

 लक्ष्मीबाई’ की कैसे कहानी लिखूँ।

 

खून झाँसी की खातिर बहाया जहाँ

उस जगह को मैं कैसे पुरानी लिखूँ।

 

मुंदरा’- सी सखी पर निछावर हूँ मैं ,

उससे बढ़कर किसे आज दानी लिखूँ।

 

जिकी साहस से वांकर गया तिलमिला

क्यों न उसको मै आज मरदानी लिखूं

 

एक वीरांगना थी, मनु नाम की  

पीढियों तक यही मैं कहानी लिखूँ।

 

कर्ज़ माटी का कैसे अदा कर गई

लक्ष्मीबाईको मैं तो सयानी लिखूँ।

 

के चर्चे सभी कर रहें ’अर्चना’मै

मैं भी ग़ज़लों में उनको दीवानी लिखूँ।

 

सं 02-05-2021

 

 


ग़ज़ल 021

  

ग़ज़ल 21 : बेटियों का हक़ कभी--

 बेटियों का हक़ कभी मत मार देना

दो न दो घर बार लेकिन प्यार देना।

 

बेटियों को हौसलों की हों उड़ानें

उड़ सकें नभ में उन्हें अधिकार देना

 

है बड़ी कोमल अगर वो रूठ जाए

प्यार से सहला के इक पुचकार देना

 

बेबसी उसकी कभी आँखों से छलके

प्यार की झप्पी उसे दो-चार देना

 

सामना वह जालिमों का कर सकेगी

 हो सके तो  हाथ मे तलवार देना

 

बेटियाँ है वंश की वाहक धरोहर

"अर्चना ’ तुम मान का उपहार देना

ग़ज़ल 020

 

ग़ज़ल 20 : विश्व भाषा बने हिंदी---

 विश्व भाषा बने हिंदी, अरमान है

मेरी हिंदी में बसता मेरा प्रान है 

 

 अब विदेशों में भी लोग पढ़ने लगे

  ये अमरबेल है पथ पर गतिमान है

 

आज जन-जन की भाषा है हिंदी बनी

अब तो भारत की यह जान है, शान है

 

"बोलियों" की भी सहभागिता कम नहीं

मिल के करती ये हिंदी का उत्थान  है

 

 ये जो 14- सितम्बर है हिंदी दिवस

इसका सम्मान ही खुद का सम्मान है

 

गर्व हमको इसी बात का है सदा

भारतीयों की हिंदी से पहचान है

 

पान सी है ये कोमल, सरस लालिमा

कौन है जो कि हिंदी से अनजान है?

 

ज्योति हिंदी की जलती रहे सर्वदा

अर्चना’ माँगती आज वरदान  है

 

डॉ अर्चना पांडेय-

 

ग़ज़ल 019

 

ग़ज़ल 19 :

 

गज़ल 19 :परेशां हैं ज़माने से, बगावत कर नहीं सकते

 1222---1222---1222----1222

 परेशां हैं ज़माने से, बगावत कर नहीं सकते

कभी जल में मगर से तुम, अदावत कर नहीं सकते

 

अकेले सच से ही गर जीतने की चाह हम कर लें

कुटिल के सामने झूठी हिमायत कर नहीं सकते।

 

करें भरपूर कोशिश वो, दबा दें सच ये मुमकिन है

कभी वो सच की ताकत-सी सदाक़त कर नहीं सकते।

 

अकेले चल रहे हैं जो मुहब्बत का लिए परचम

क़यामत हो भले बरपा, वो नफ़रत कर नहीं सकते।

 

जहाँ पर "अर्चना" केवल बसेरा झूठ का होते

वहाँ बातिल से हम हरगिज रफ़ाक़त कर नहीं सकते।

 

सं 02-05-2021


  

ग़ज़ल 018

 

ग़ज़ल 18 : मेरे मन को क़रार आ जाए

 

मेरे मन को करार आ जाए

मेरे घर जो बहार आ जाए

 

फायदा क्या है बड़े/ऐसे आंगन का

यदि उस में दरार आ जाए

 

कोई सुनता नहीं परेशानी 

जब दिल में गुबार आ जाए

 

कौन पढ़ता है जख्म औरों का

दूरियों का विचार आ जाए

 

हाथ उठता नहीं मदद के लिए

मिन्नतें या गुहार आ जाए

 

एक मुस्कान पाट दे दूरी

स्नेह की एक पुकार आ जाए

 

'अर्चना' सोच रही वो मंजर

रिश्तों में निखार आ जाए

 

 डॉ अर्चना पाण्डेय

ग़ज़ल 017

 

ग़ज़ल 17 : धूप हो या छाँव--

 धूप हो या छांव सबको प्यार बोना  चाहिए

जब ज़मीं  में हो नमी अवसर न खोना चाहिए

 

प्यार का दीपक जले और रोशनी हो हर तरफ़

 हर किसी सीने में इक चाहत का कोना चाहिए

 

इस जमाने में अगर कुछ कर गुजरना हो कभी

 आदमी को हौसला अपना सँजोना चाहिए

 

 यूं तो सबसे प्यार से हंसकर सदा मिलते रहो

मन से मन जब जब मिले दिल साफ़ होना चाहिए

 

 हारने पर दिल को अपने आँसुओं से मत भिंगो

  मंज़िलें हैं और भी, धीरज न खोना चाहिए

 

---अर्चना पांडेय --

 


 

ग़ज़ल 016

 

ग़ज़ल 16 : हैदराबाद की कहानी है

 हैदराबाद’ की कहानी है

यूँ तो तसवीर यह पुरानी है        1

 

अब भी ज़िन्दा है हुस्न-ए-भागमती’

नरगिसी प्यार की निशानी  है      2

 

चारमीनार’ शान है इसका

यह भी तारीख़ की निशानी है 4

 

मौज़ें गाती हुसेन सागर’ की

क्या तरन्नुम है ! क्या रवानी  है   5

 

"बुद्ध की मूर्ति" कह रही सबसे

जो नसीहत है आज़मानी  है       6

 

शान-ए-दक्कन जिसे कहे दुनिया

आज इसका न कोई सानी है 7

 

हैदराबाद कि ये बिरयानी’-

हुस्न-ए-लज़्ज़त भी जानी मानी है   8

 

नाम-ए-उसमानियाँ’ सुना होगा

मरकज़-ए-इल्म की निशानी है 9

 

बात उर्दू ज़बान दक्कन की

कितनी शीरी है गुलफ़सानी है 10

 

गोलकुंडा’ के पत्थरों से सुना

"क़ुतुबशाही’ का दौर जुबानी है 11

 

आलिमों का, निज़ाम शाही का

शह्र-ए-तहजीब ज़ाविदानी है            12

 

अर्चना’ और क्या सुना सकती?

जो सुनी है वही सुनानी है ।        13

 

अर्चना पांडेय-