1. ग़ज़ल 013 मोहिनी एक बंसी बजा दीजिए
प्यार है आप को यह जता दीजिए
ज़िंदगी से परेशान फिरते हैं हम
कंस अपने जहाँ से मिटा दीजिए
मान ऊँचा रहे दोस्ती का सदा
इक सुदामा सा साथी बता दीजिए
प्यार जैसा लुटाया था मीरा पे तब
प्यार वैसा ही मुझ पर लुटा दीजिए
गोपियाँ है यहीं राधिका भी
यहीं
रासलीला हे माधव रचा दीजिए
आज मानव गुनाहों मे डूबा हुआ
चक्र अपना ज़रा सा चला दीजिए
आज अर्जुन नहीं, 'अर्चना
' है व्यथित
ज्ञान गीता का मुझको सुना
दीजिए
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