1.
ग़ज़ल 011
क्या छुपा लूँ मोहोब्बत तो छुप जाएगी
इश्क कस्तूरी सी है, महक
जाएगी।
बंद करदो जुबाँ तुम भले शौक से
मन की चिड़िया का क्या है? चहक
जाएगी।
दिल की चिंगारियों में अभी आग है
आग दबती कहाँ है? दहक
जाएगी।
मय के प्यालों में कैसा घुला है नशा
जिंदगी गर जो पी ले बहक जाएगी।
घर सजा कर रखी ‘अर्चना’ इस तरह
मूक दीवार-ओ-दर भी चहक जाएगी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें