मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल 002

 ग़ज़ल 002 : प्यार की है  ये गंगा---- 

प्यार की है ये गंगा तुम्हारे लिए

आचमन न करो ये अलग बात है

 

बाग के सारे माली तुम्हारे लिए

चाह कर ना खिलो ये अलग बात है

 

टूटता कोई तारा मुझे दिख गया

तुमको दिखता न हो ये अलग बात है

 

धर्म की आड़ में बढ़ रहा जुर्म क्यों

तुम भी उत्तर न दो ये अलग बात है

 

मीत सच्चे सदा काम आए यहाँ

साथ आओ न आओ अलग बात है

 

साथ चलने को अब आ गई 'अर्चना'

संग तुम ना चलो ये अलग बात है

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें