ग़ज़ल 002 : प्यार की है ये गंगा----
प्यार की है ये गंगा तुम्हारे लिए
आचमन न करो ये अलग बात है
बाग के सारे माली तुम्हारे लिए
चाह कर ना खिलो ये अलग बात है
टूटता कोई तारा मुझे दिख गया
तुमको दिखता न हो ये अलग बात है
धर्म की आड़ में बढ़ रहा जुर्म क्यों
तुम भी उत्तर न दो ये अलग बात है
मीत सच्चे सदा काम आए यहाँ
साथ आओ न आओ अलग बात है
साथ चलने को अब आ गई 'अर्चना'
संग तुम ना चलो ये अलग बात है
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