ग़ज़ल 20 : विश्व भाषा बने हिंदी---
मेरी हिंदी में बसता मेरा प्रान है
अब विदेशों में भी लोग पढ़ने
लगे
ये अमरबेल है पथ पर गतिमान
है
आज जन-जन की भाषा है हिंदी बनी
अब तो भारत की यह जान है, शान
है
"बोलियों" की भी सहभागिता कम नहीं
मिल के करती ये हिंदी का उत्थान
है
ये जो 14- सितम्बर है हिंदी दिवस
इसका सम्मान ही खुद का सम्मान है
गर्व हमको इसी बात का है सदा
भारतीयों की हिंदी से पहचान है
पान सी है ये कोमल, सरस
लालिमा
कौन है जो कि हिंदी से अनजान है?
ज्योति हिंदी की जलती रहे सर्वदा
”अर्चना’ माँगती आज वरदान है
डॉ अर्चना पांडेय-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें