ग़ज़ल 22 :चंद पन्नों में कैसे जबानी लिखूँ
212----212-----212----212
चंद पन्नों में कैसे जबानी लिखूँ
“लक्ष्मीबाई’
की कैसे कहानी लिखूँ।
खून झाँसी की खातिर बहाया जहाँ
उस जगह को मैं कैसे पुरानी लिखूँ।
’मुंदरा’- सी सखी पर निछावर हूँ मैं ,
उससे बढ़कर किसे आज दानी लिखूँ।
जिनकी साहस से वांकर गया तिलमिला
क्यों न उसको मै आज मरदानी लिखूं
एक वीरांगना थी, मनु नाम की
पीढियों तक यही मैं कहानी लिखूँ।
कर्ज़ माटी का कैसे अदा कर गई
’लक्ष्मीबाई ’को मैं तो सयानी लिखूँ।
उनके चर्चे सभी कर रहें ’अर्चना’मै
मैं भी ग़ज़लों में उनको दीवानी लिखूँ।
सं 02-05-2021
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें