बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल 008

 

1.     खुदा से मोहब्बत हुआ जा रहा है

 

खुदा से मोहब्बत हुआ जा रहा है

सुरूर-ए-इबादत चढ़ा जा रहा है

 

कहीं ये जमीं पर भटकता रहा था

हवा में मेरा दिल उड़ा जा रहा है

 

टूटा था इतना बिखर सा गया था

नई डोर से ये जुड़ा जा रहा है

 

मुकम्मल कोई राह मिलती नहीं थी

नई राह पर यह मुड़ा जा रहा है

 

पकड़ता हूं जिसको वहीं भागता है

कोई हाथ मुझसे छुड़ा जा रहा है

 

 

 

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