बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल 009

 

1.     सब ही रुठे हुए हैं मनाऊँ किसे

 

सब ही रुठे हुए हैं मनाऊँ किसे

अब कहानी मैं अपनी सुनाऊँ किसे

 

दाव चलती गई जिंदगी बेखबर

हारकर दाव सारे जिताऊँ किसे

 

है हुनर कि मना लूँ किसी यार को

कोई कह दे भला मैं सताऊं किसे

 

रोज खुशियों के गूंजे तराने यहां

साज बाजों की खातिर रिझाऊँ किसे

 

पल रहे ख्वाब कितने मेरी आँख में

लोरियाँ गा के अपने सुनाऊँ किसे

 

डॉ अर्चना पाण्डेय

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