बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल 006

 

1.       हौसलों के पंख बाँधे चल सफर पर

 

हौसलों के पंख बाँधे चल सफर पर

छोड़ दे बैसाखियां गैरों के दर पर

 

रात भर डटकर करो तालीम हासिल

हर मुरादे होंगी पूरी तब सहर पर

 

चल मशालें हाथ लेकर तू अकेला

ध्यान मत देना ज़माने के गदर पर

 

कर नया निर्माण तुम कस लो कमर को

हैं निगाहें आज सबकी इस शहर पर

 

वो तवज्जो दे ना दे मसला तुम्हारा

तुम रखो पैनी नजर बिकती खबर पर

 

क्यों बना महरूम है तू इस बज़म में

मांगना क्या ठीक है अब दर-बदर पर

 

डॉ अर्चना पांडेय

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