बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल 010

 ग़ज़ल 010

1.      छोड़ शिकवा, शिकायत, गिला ज़िंदगी

साथ मेरे कभी गीत गा ज़िंदगी

  

हो गई क्यों तू मुझसे ख़फ़ा ज़िंदगी

क्या ख़ताएँ हैं मेरी बता ज़िंदगी

 

दर्द जिसने दिया है दवा जान कर

उस से कहना मेरा शुक्रिया, ज़िंदगी !

 

उम्र भर मैं तो तदबीर करती रही   

मेरी तकदीर से भी मिला, ज़िंदगी

 

 

थक गई आंख मेरी उसे ढूंढते

वो मिलेगा कहाँ तू बता ज़िंदगी

 

एक मुद्दत हुई नींद आए हुए

लोरियाँ ‘अर्चना’ को सुना जिंदगी

 

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