बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल 015

 

1.      जीत पर हमको नहीं

 

जीतने वालों को ना ऐसा बहकना चाहिए

हारने वाले के ना आँसू  छलकना चाहिए।

 

 फूल क्या जो गैर को खुशबू न अपनी दे सके

तुम खिलो इतना कि सबका घर महकना चाहिए।

 

गैर वाजिब बोल कर दीवार न पैदा करो

खिड़कियों को खोल दो सबको चहकना चाहिए।

 

वक़्त की गाड़ी निकलती जा रही हो जब कभी

दौड़कर ऐसी न रेलों पर लटकना चाहिए।

 

गीत गाना गा दिया पर कोई सुन पाया नहीं

गा रहे जो गीत,  हर मन भी चहकना चाहिए।

 

थक के जो बैठे रहोगे मंजिलें ना पाओगे

आदमी को हारकर हरगिज़ न रुकना चाहिए।

 

चांद तारों के सहारे राह कट सकती नहीं

रात कितनी हो घनी, तुमको चमकना चाहिए।

 

अपना गम  दिल में छुपा कर  हँसती रहती 'अर्चना'

दोस्तों के दर्द में सबको सुबकना चाहिए।

 

 

डॉ अर्चना पाण्डेय

 

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