बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल 021

  

ग़ज़ल 21 : बेटियों का हक़ कभी--

 बेटियों का हक़ कभी मत मार देना

दो न दो घर बार लेकिन प्यार देना।

 

बेटियों को हौसलों की हों उड़ानें

उड़ सकें नभ में उन्हें अधिकार देना

 

है बड़ी कोमल अगर वो रूठ जाए

प्यार से सहला के इक पुचकार देना

 

बेबसी उसकी कभी आँखों से छलके

प्यार की झप्पी उसे दो-चार देना

 

सामना वह जालिमों का कर सकेगी

 हो सके तो  हाथ मे तलवार देना

 

बेटियाँ है वंश की वाहक धरोहर

"अर्चना ’ तुम मान का उपहार देना

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