बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल 017

 

ग़ज़ल 17 : धूप हो या छाँव--

 धूप हो या छांव सबको प्यार बोना  चाहिए

जब ज़मीं  में हो नमी अवसर न खोना चाहिए

 

प्यार का दीपक जले और रोशनी हो हर तरफ़

 हर किसी सीने में इक चाहत का कोना चाहिए

 

इस जमाने में अगर कुछ कर गुजरना हो कभी

 आदमी को हौसला अपना सँजोना चाहिए

 

 यूं तो सबसे प्यार से हंसकर सदा मिलते रहो

मन से मन जब जब मिले दिल साफ़ होना चाहिए

 

 हारने पर दिल को अपने आँसुओं से मत भिंगो

  मंज़िलें हैं और भी, धीरज न खोना चाहिए

 

---अर्चना पांडेय --

 


 

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