बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

ग़ज़ल 018

 

ग़ज़ल 18 : मेरे मन को क़रार आ जाए

 

मेरे मन को करार आ जाए

मेरे घर जो बहार आ जाए

 

फायदा क्या है बड़े/ऐसे आंगन का

यदि उस में दरार आ जाए

 

कोई सुनता नहीं परेशानी 

जब दिल में गुबार आ जाए

 

कौन पढ़ता है जख्म औरों का

दूरियों का विचार आ जाए

 

हाथ उठता नहीं मदद के लिए

मिन्नतें या गुहार आ जाए

 

एक मुस्कान पाट दे दूरी

स्नेह की एक पुकार आ जाए

 

'अर्चना' सोच रही वो मंजर

रिश्तों में निखार आ जाए

 

 डॉ अर्चना पाण्डेय

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