ग़ज़ल 18 : मेरे मन को क़रार आ जाए
मेरे मन को करार आ जाए
मेरे घर जो बहार आ जाए
फायदा क्या है बड़े/ऐसे आंगन का
यदि उस में दरार आ जाए
कोई सुनता नहीं परेशानी
जब दिल में गुबार आ जाए
कौन पढ़ता है जख्म औरों का
दूरियों का विचार आ जाए
हाथ उठता नहीं मदद के लिए
मिन्नतें या गुहार आ जाए
एक मुस्कान पाट दे दूरी
स्नेह की एक पुकार आ जाए
'अर्चना' सोच रही वो मंजर
रिश्तों में निखार आ जाए
डॉ अर्चना पाण्डेय
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