क़िस्त 24
1
दर्शन तो बहाना था
हमको तो केवल
तेरे दर तक आना था।
2
दिल हो जाता पागल
याद लिए तेरी
लहराता जब आँचल।
3
बरफीली राहों में
धूप खिली होगी
उलफ़त की निगाहों में
4
मिलना मजबूरी है
तुम तो हो अपने
क्यों इतनी दूरी है ?
5
मेरे ही सवालों में।
ज़िक्र तेरा आता
क्यों रोज खयालों में
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