क़िस्त 28
1
गुमसुम गुमसुम हरदम
क्यों रहते हो तुम
बोलो न मेरे जानम !
2
रोने ही वाला था
पाया तब तुमको
तुमने ही सँभाला था।
3
कहते हुए रुक जाती
जो कहना है वो
मैं क्यों नहीं कह पाती ?
4
जब जब तुम लहराती
बागों में चलती
कलियां भी शरमाती
5
जीवन की निशानी है
मेरी ग़ज़लों मे
इक तेरी कहानी है
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