क़िस्त 25
1
दुनिया से हारा हूँ
मन से नहीं हारा
उठता मैं दुबारा हूँ।
2
कुछ बातें करती हूँ
तनहाई में ,मैं
तेरा दम भरती हूँ।
3
मिलने में दूरी है
सपनों में भी क्यों
ऐसी मजबूरी है ?
4
दिल मान नहीं सकता
प्यार करे ना वो
रोके से कहाँ रुकता।
5
लगता तू प्यारा है
दिल कहता रहता
तू प्यार हमारा है
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