मंगलवार, 10 मई 2022

गीत 001:अमलतास

          अमलतास


अमलतास की झिलमिल झालर

सजी सड़क के दोनों छोर

पीत वसन ओढ़े नव दुल्हन 

ज्यों चलती आंगन की ओर


मंद पवन आकर लहराए

पत्ते भी झिलमिल झकझोर

एक नहीं पत्ता हरियाला

पीले फूलों का बस ज़ोर


क्राफ्ट बनाते बच्चे जैसे

गोंद लगा कर चिपकाते

और सजाते एक दूजे को

फिर धागे के दोनों ओर


एक दिशा में हिलते सारे

एक रंग में इठलाते

शाम ढले ये लगते सुंदर

स्वर्णिम सी करते ये भोर


अपने यौवन पर इस जग में

कौन भला न इठलाया

माथे पर टीका नग वाला

काजल वाला काला कोर


तपती है धरती, लू बहता

हरियाली लगती अनजान

कोयल अपना राग सुनाती

बोल रहे डालों पर मोर


वर्षा को यह पास बुलाती

गर्मी चाहे जितनी जोर

अमलतास का रूप निराला

और अनोखा यह चितचोर


डॉ अर्चना पाण्डेय

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