गुरुवार, 20 मई 2021

ग़ज़ल 42

 

ग़ज़ल 42

 

212----212-----212-----212

तुमको लगता है उल्फत में कुछ ग़म नहीं,

या नज़ाकत है, इसमें कोई दम नहीं ?

 

खत्म होने को है स्याह सी ज़िन्दगी

 रोशनी का यह आलम भी कुछ कम नहीं 

 

पेंच-ओ-ख़म है बहुत इश्क़ की राह में

ये मुहब्बत किसी रोग से कम नहीं 

 

लोग कहने लगे” बेसबब बेवफ़ा

बेवफा और होंगे मगर हम नहीं ।

 

सिलसिला इश्क का साँस जब तक रहे

साथ मैं छोड दूँ मैं वो हमदम नहीं

 

रोज़ ढाता है मुझ पे जमाना सितम

’अर्चना’ की हुई आंख तो नम नहीं

 

सं 11-05-21

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