ग़ज़ल 34 : जाने क्यों आज ---
2122---1212---112/22
आज जाने क्यों मुस्कराई
मैं ,
याद आए वो, फिर लजाई मैं
।
मेरे पहलू में ही वो
बैठे थे,
उनको मुड़कर न देख पाई मैं ।
उनकी नज़रें भी ढूंढती होंगी,
खुद से खुद को रही छुपाई
मैं ।
दूर रह कर भी पास थे
गोया
फ़ासिले कब भला मिटाई
मैं
जब कभी सामना हुआ उनसे
मन में इक ईद सी मनाई मै
”अर्चना’ इश्क़ में खबर ही कहाँ
क्या कहे थे वो सुन न पाई मैं
सं 08-05-21
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