मंगलवार, 18 मई 2021

ग़ज़ल 026

 

:ग़ज़ल 026   : तपती रेतों पे ही बस ---

212---212----212----212

तपती रेतों पे ही बस न चल ज़िन्दगी,

लॉन’ में भी कभी तो टहल ज़िन्दगी

 

राह आसान हो या कि मुश्किल मिले

बीच में साथ अब ना बदल ज़िन्दगी

 

सच की बातें किताबों में लिख्खी तो हैं

कौन करता है उन पर अमल ज़िन्दगी

 

आज तक ना मिला जो था सोचा कभी

ख़्वाब में जो बनाया महल ज़िन्दगी

 

जो मिला है ख़ुदा की इनायत समझ

और का देख कर तू न जल ज़िन्दगी

 

दौड़ में लोग शामिल थे आगे रहें

तू भी पीछे न रह, कर पहल ज़िन्दगी

 

हक़ है जीने का सब को कली-फूल हो

डाल पर ही न उनको मसल ज़िन्दगी

 

किसको मिलता यहाँ ग़म नहीं अर्चना’

गा तू अपनी ख़ुशी की ग़ज़ल ज़िन्दगी          सं 03-05-21

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें