1212--1122--1212---22 [ पर बाँधा जाए ]
बिन ढलान/ के झरना को/ई कहाँ बहा होता
रिश्तों
में भी प्यार मोहोब्बत कहाँ रहा होता
बागों
के पौधों की जड़ का पता नहीं
गमले
के पौधे की जड़ क्या नाप रहा
चोरों
के सरदार कई मिल जाएंगे
प्यार
निभाने वालों का अब कहाँ पता
सबसे
हमको खूब शिकायत रहती है
एक
बात में बरसों का नाता ढहा
सबको
अपनी अस्मत प्यारी होती है
मौका
मिलते ही तूने भी खूब कहा
तू
इतना मजबूत बना हर रिश्ते को
छोटी
तकरारों से न हो जाए हवा
[ मुज्तस मुसम्मन मख़्बून
महजूफ़ ]
12 12/ 1122 /1212
/22
बिना ढलान के झरना / बहा कहाँ कोई
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें