ग़ज़ल 48 : मतलबी रिश्ता
कोई समझा गया
2122---2122--212
मतलबी रिश्ता कोई समझा गया
आदमी शैतान बन कर आ गया
छाँव ठंडी मैं जिसे समझा किया
चिलचिलाती धूप बन कर छा गया
ज़िन्दगी थी चार दिन की ही मगर
मुद्दतों का ग़म मुझे तड़पा गया
प्यार की कीमत लगा बाज़ार में
इश्क़ था जो हासिए पर आ गया
तोड़ कर बन्धन कोई जब ’अर्चना’
एक परिभाषा नई बतला गया
सं 12-05-21
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