ग़ज़ल 39 : इस तरह कुछ प्यार से---
2122-----2122---2122
इस तरह कुछ प्यार से मिलना पड़ेगा
फ़र्श को भी अर्श तक चलना पड़ेगा
बन नहीं सकता महल बस सोचने से
ईंट बन बन कर तुम्हें ढलना पड़ेगा
पेड़ पर सोना नहीं उगता
है, प्यारे !
आग में दिन रात तो जलना
पड़ेगा
जब मुहब्बत चाक कर देती कलेजा
जख्म अपने हाथ से सिलना
पड़ेगा
रोकने से कब रुका कोई फितूरी
आफताबों को नहीं ढलना पड़ेगा
क़ाफ़िया – ग़लना—छलना--
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