ग़ज़ल 28 भूल जाना ना पड़े—
2122----2122---2122
भूल ना जाएं इधर आनी बहारें
देवदारों की न अब दिखती कतारें
जिस तरह हथिनी को हमने मौत दी है
गूंजती है कान में उसकी पुकारें
वन हुए वीरान, हरियाली मरी है
वक़्त हो तो हम सभी इस पर
विचारें
यह
न सोचो कुछ नहीं करती धरा है
वक्त के तलवार की हैं तेज धारें
इस चमन का हम करें मिल
कर हिफ़ाज़त
कोयलों की कूक से बगिया सवारें
जिस तरह दोहन किए हो इस धरा का
'अर्चना' है चाहती इनको सुधारें
[ नोट -यह ग़ज़ल केरला की एक अमानवीय़ घटना से उपजी पीड़ा है
कुछ लोगो ने घॄणित स्वार्थवश एक गर्भवती हथिनी को फ़ल में विस्फोट्क मिला कर
दे दिया और उस की
अकाल मृत्यु हो गई ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें