मंगलवार, 18 मई 2021

ग़ज़ल 028

 ग़ज़ल 28 भूल जाना ना पड़े

2122----2122---2122

  भूल ना जाएं इधर आनी बहारें

 देवदारों की न अब दिखती कतारें

 

 जिस तरह हथिनी को हमने मौत दी है

गूंजती है कान में उसकी पुकारें

 

 वन हुए वीरान, हरियाली मरी है

वक़्त हो तो हम सभी इस पर विचारें

 

 य न सोचो कुछ नहीं करती धरा है

 वक्त के तलवार की हैं तेज धारें

 

इस चमन का हम करें मिल कर हिफ़ाज़त

कोयलों की कूक से बगिया सवारें

 

जिस तरह दोहन किए हो इस धरा का

'अर्चना' है चाहती को सुधारें

 

[ नोट -यह ग़ज़ल केरला की एक अमानवीय़ घटना से उपजी पीड़ा है
कुछ लोगो ने घॄणित स्वार्थवश एक गर्भवती हथिनी को फ़ल में विस्फोट्क मिला कर

दे दिया और उस की अकाल मृत्यु हो गई ।

सं 03-05-21

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