बुधवार, 19 मई 2021

ग़ज़ल 33

 

ग़ज़ल 33:   तुम्हें मन में बसाना –

 

1222----1222---1222122

तुम्हें मन में बसाना चाहती हूँ

तुम्हें अपना बनाना चाहती हूँ

 

तड़पती हूँ बिना जल मीन जैसे

तुम्हारे पास आना चाहती हूँ

 

नहीं जीना मुझे मर मर के,  जानम !

तुम्हें सपनों में पाना चाहती हूँ

 

न बातें दिल की रह जाए अधूरी

मैं अपना ग़म सुनाना चाह्ती हूँ

 

तेरी तस्वीर सीने में बसी है

उसे जग से छुपाना चाहती हूँ

 

न तुमको है भरोसा अर्चना पर

यकीं मर कर दिखाना चाहती हूँ

 

सं 10-05-21

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