बुधवार, 19 मई 2021

ग़ज़ल 32

 

ग़ज़ल 32 : तू मेरी आरज़ू, तू मेरा प्यार है

 

212—212---212----212

तू मेरी आरज़ू, तू मेरा प्यार है,

मुझ को तेरे सिवा कुछ न दरकार है ।

 

रोज़ ही सुर्खियाँ बन के तू छ रहा,

लग रहा तू नया कोई अख़बार है

 

क्या बचाएगा मुझको तू मझधार से,

तेरी टूटी हुई ख़ुद की पतवार है

 

जालिमों के इधर बढ़ रहे हौसले,

ढूँढती हूँ कहाँ न्याय का द्वार है?

 

छोड़ दो नफ़रतें कह रही ’अर्चना’,

तुमको रचना नया एक संसार है

 

सं 02-05-2021

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें