क़िस्त 07
1
बढ़कर रुक जाता हूं
द्वार नहीं कोई
मैं लौट के आता हूं
2
खिल जाता है यह मन
मिलती हूं तुमसे
खिल जाता है आनन
3
तुम कुछ तो बात करो
काँप रहा है तन
ना मेरा हाथ धरो
4
कैसा
ये परिंदा है
पंख
कटा लेकिन
फिर
भी यह जिंदा है
5
क्यों शोर मचाते हो ?
प्यार हुआ है तो
क्यों
ढोल बजाते हो ?
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