ग़ज़ल 30: अकेले अकेले जिए जा रहे---
122—122---122---122
अकेले अकेले जिए जा रही हूँ
ख़ुशी हो कि ग़म, मै लिए जा रही हूँ
वो माना कि मुझ से ख़फ़ा
चल रहा है
मगर फूल उसको दिए जा रही हूँ
कि जिसने दिया ग़म मुझे
उम्र भर का
उसी से शिकायत किए जा
रही हूँ
ज़माना हुआ वो गया कब का
लेकिन
अभी तक मैं आँसू पिए जा
रही हूँ
यूँ कहने को बातें बहुत
है मगर
लबों को मैं अपने सिए जा
रही हूँ
अगर हो न मंज़िल निगाहों
की हद में
कहाँ मैं किधर किसलिए जा रही हूँ
सं 11-05-21
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