ग़ज़ल 38 : चाँद जब जब
आसमाँ पर
2122—2122—212
चाँद जब जब आसमाँ पर आएगा
जानती हूँ रात भर तड़पाएगा
ढूँढने को दिल मेरा बेताब जब
बादलों की ओट में छुप जाएगा
दर्द मेरा हो जमाने का सही
गीत बन कर अश्क़ में ढल जाएगा
चाँद कब देगा दिलासा प्यार का
आग पर वह आग ही बरसाएगा
एक दिन पाती उसे मिल जायेगी
आस का दीपक न बुझने पाएगा
जो गया फिर कौन लौटा ’अर्चना’
वह भला क्यों लौट कर फिर आएगा
सं 10-05-21
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