मंगलवार, 18 मई 2021

ग़ज़ल 027

 ग़ज़ल 27 : सोचती हूँ गली छोड़ दूँ

 212---212---212---212

 ज़िन्दगी से हुए हम नहीं आशना

मुश्किलों से भला अब कहाँ भागना

 

सोचती हूँ गली छोड़ दूं आपकी

कर न पाऊँगी मैं आपका सामना

 

यह इरादा कभी मेरा पूरा न हो

मैं खुदा से यही कर रही कामना

 

जिंदगी तो सदा लड़खड़ाती रही

सीख लूंगी इसे एक दिन थामना

 

प्यार पाने की चाहत जिसे हो गई

नींद आती नहीं, रात भर जागना

 

अर्चना” खुद में खुद को सदा ढूँढती

पर अभी तक हुआ ही नहीं सामना

सं 03-05-21


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