बुधवार, 19 मई 2021

ग़ज़ल 37

 

ग़ज़ल 37  : माँ की आँखों में ---

2122---1212---22

 

मां की आंखों में पल रही गुड़िया

क्यों  जमाने को खल रही गुड़िया ?

 

अपने ऊपर यक़ीन है उसको

एक बला सी पल रही गुड़िया

 

खुद को ही खोजने चली लेकिन

क़ैद में है किसी महल गुडिया

 

 चलने वालों को ही मिली मंज़िल

रुक नहीं, रोज यूं ही चल गुड़िया

 

हौसला और आस रख दिल में

 धीरता ही तेरा है बल गुड़िया

 

 सब के हाथों न बन खिलौना तू

 आज में देख अपना कल गुडिया

 

 ’अर्चना’ सोच में इधर डूबी

आग में क्यों उधर जली गुड़िया

 

सं 09-05-21

 

 

 

 

 

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