ग़ज़ल 45 देहरी पर दिए जगमगाने
लगे---
212---212---212—212
दीप देहरी पे हैं जगमगाने लगे
गीत खुशियों के हम आज गाने लगे
तुम उधर स्नेह दीपक
जलाते रहे
हम इधर प्रेम- दीपक
जलाने लगे
आज दीपावली की सुखद रात है
जो भी रिश्ते थे रूठे
मनाने लगे
आसमाँ ने सजाए सितारे
उधर
हम जमीं पर सितारे सजाने
लगे
आज गुझिया बनी,साथ मठरी बनी
मालपूए, मिठाई सुहाने लगे
पुष्प अक्षत लिए हाथ में
’अर्चना’
थाल में स्वस्तिका श्री
बनाने लगे
सं 10-05-21
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