एक ग़ज़ल
22--22--22--22-22--2
तुम बिन सूना-सूना लगता आँगन है
तुम आते हर मौसम लगता सावन है
तुम आते हर मौसम लगता सावन है
यूं तो कोई मोल नहीं था जीवन का
तेरे छू लेने भर से यह चंदन है
जाने क्यों तुझ में दिल रमता रहता
तू ही मेरी पूजा ,मेरा वंदन है
मैंने तो सब कुछ हँसकर तुमसे बाँटा
मेरे हिस्से में आई बस खुरचन है
जैसे टूटे कांचों पर थिरकन होती
वैसे ही जीवन का मेरा नर्तन है
लिखना चाहूँ तो भी ना लिख पाऊँ मै
ऐसा गहरा रिश्तों का यह बंधन है
जीवन क्या था, टुकड़ा एक ज़मीं का था
तुम आए तो महका मन का आँगन है
अपने माथे पर मैं रोज लगाती हूँ
धरती माँ का कण-कण मेरा चंदन है
अरमानों को जिस ढांचे में ढालो तुम
ले लेता आकार हमारा बचपन है
जीवन भर जो सच का साथ नहीं छोड़े
ऐसा सच्चा केवल मेरा दरपन है
डॉ अर्चना पाण्डेय
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