किस्त 41
1
आंखों के तारे हो
तुम ही तो मेरे
जीने के सहारे हो
2
क्या रूप सलोना था !
दिल बहला मेरा
क्या खूब खिलौना था
3
दिल तुम पर दीवाना
सीख लिया हमने
हमदम ! अब इतराना
4
तुमको था बतलाना
तुम ने सुना ही नहीं
अब क्या है जतलाना ?
5
पाया है तुम्हे खो कर
दुनिया से तो बस
मिलता ही रहा ठोकर
-डा0 अर्चना पाण्डेय –
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