क़िस्त 40
1
बरसों से क्या जाना
कुछ भी नहीं समझा
अब तक था अनजाना
2
तनहाई पीना है
हमको तो साक़ी
प्यासा ही जीना है
3
कैसा यह प्याला है
मन ही नहीं भरता
कैसी मधुशाला है ?
4
तुम हमसे जो रूठे
जग रूठा हमसे
सब रिश्ते हैं झूठे
5
वो प्यार नहीं होता
जब न कभी कोई
तकरार नहीं होता
डा0 अर्चना पाण्डेय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें