क़िस्त 18
1
पाया
है तुम्हें खोकर
दुनिया
में मुझको
लगता
ही रहा ठोकर।
2
यादों
में बसे हो तुम
ढूढ़
रही हूँ मै
जाने
न कहाँ हो गुम।
3
घूँघट
में छुपा लेते
चेहरा
हम अपना
दर्शन
हम कब देते ?
4
हम
मान लिए गलती
ऐसी
घड़ी साहिब !
हर
बार नहीं मिलती।
5
है
बात वफाओं की
याद
हमें रहती
सब
बात ज़फ़ाओं की।
डा0
अर्चना पाण्डेय
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