मंगलवार, 12 अप्रैल 2022

माहिए 18

 

क़िस्त 18

1

पाया है तुम्हें खोकर

दुनिया में मुझको

लगता ही रहा ठोकर।

 

2

यादों में बसे हो तुम

ढूढ़ रही हूँ मै

जाने न कहाँ हो गुम।

 

3

घूँघट में छुपा लेते

चेहरा हम अपना

दर्शन हम कब देते ?   

 

4

हम मान लिए गलती

ऐसी घड़ी साहिब !

हर बार नहीं मिलती।  

 

5

है बात वफाओं की

याद हमें रहती

सब बात ज़फ़ाओं की।

 

डा0 अर्चना पाण्डेय

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