सोमवार, 2 नवंबर 2020

ग़ज़ल 025 : तुमने भी क्या ऐसा मंज़र---

एक ग़ज़ल : तुमने भी क्या ऐसा मंज़र ---- 

तुमने भी क्या ऐसा मंज़र देखा है ?
 मैंने घुटना टेक सिकंदर देखा है 

 कैसे करूं भरोसा आज जमाने पर
 मुंह में राम बगल में ख़ंजर देखा है

गोरे लोगों से ही प्यार नहीं करना
 बदसूरत का दिल भी सुंदर देखा है 

खुश मत होना फूलों के बागानों में
 मुरझाई कलियों का मंजर देखा है 

अच्छा बोलो, सुनो, कहो सब कहते हैं 
पर क्या ऐसा होते तुमने देखा है

बाहर से तो सारे अच्छे लगते हैं
पर मैंने मन के भी अंदर देखा है


डॉ अर्चना पाण्डेय

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें